5 SIMPLE TECHNIQUES FOR BAGLAMUKHI SADHNA

5 Simple Techniques For baglamukhi sadhna

5 Simple Techniques For baglamukhi sadhna

Blog Article



मुद्गरं दक्षिणे पाशं, वामे जिह्वां च विभ्रतीम् । पीताम्बर-धरां सौम्यां, दृढ-पीन-पयोधराम् ।।

ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।

“यजुर्वेद’के प्रसिद्ध ‘आभिचारिक प्रकरण’ में अभिचार-स्वरूप की निवृत्ति में इसी शक्ति का विनियोग किया गया है। इस प्रकरण का ‘यजुर्वेद’ की सभी संहिताओं (तैत्तरीय, मेत्रायणी, काक, काठक, माध्यन्दिनि, काण्व) में समान-रूप से पाठ आया है। ‘माध्यन्दिनि संहिता’ के भाष्य-कर्त्ता उव्वट, महीधर भाष्यकारों ने जैसा अर्थ इसका लिया है, उसका सार यहाँ देते हैं। पं० ज्वालाप्रसाद कृत मिश्र भाष्य में इसका हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है।

अर्थात् ‘शत्रु के विनाश के लिए कृत्या-विशेष भूमि में जो गाड़ देते हैं, उन्हें नाश करनेवाली वैष्णवी महा-शक्ति को वलगहा कहते हैं।’ यही अर्थ वगला-मुखी का भी है। ‘खनु अवदारणे ‘ इम धातु से मुख’ शब्द बनता है, जिसका अर्थ मुख में पदार्थ का चर्वण या विनाश ही अभिप्रेत होता है। इस प्रकार शत्रुओं द्वारा किए हुए अभिचार को नष्ट करनेवानी महा-शक्ति का नाम ‘बगला-मुखी’ चरितार्थ होता है। श्रीमहीधर ने इसका स्पष्ट अर्थ ऐसा किया है-

शुद्ध-स्वर्ण-निभां रामां, पीतेन्दु-खण्ड-शेखराम् । पीत-गन्धानुलिप्ताङ्गीं, पीत-रत्न-विभूषणाम् ।।१पीनोन्नत-कुचां स्निग्धां, पीतालाड्गी सुपेशलाम् । त्रि-लोचनां चतुर्हस्तां, गम्भीरां मद-विह्वलाम् ।॥२वज्रारि-रसना-पाश-मुद्गरं दधतीं करैः । महा-व्याघ्रासनां देवीं, सर्व-देव-नमस्कृताम् ।।३

मां बगलामुखी यंत्र चमत्कारी सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है। माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में click here हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।

वृहस्पतिर्मातारश्वोत वायुस्संध्वाना वाता अभितो गृणन्तु ॥

४. ॐ ह्लीं श्रीं ईं श्रीमोहिन्यै नमः-वाम-नेत्रे (बाईं आँख में) ।

६. श्रीदुर्द्धरायै नमः जिसका सामना न किया सके या जिसे रोका न जा सके, उसको नमस्कार।

२९. ॐ ह्लीं श्रीं डं श्रीजयायै नमः–दक्ष-गुल्फे (दाँएँ टखने में) ।

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि ‘स्वतन्त्र तन्त्र’ में उल्लिखित कथा और ‘कृष्ण यजुर्वेद’ के दोनों मन्त्रों में कथित श्रीबगला-तत्त्व अभिन्न हैं।

श्रीब्रह्मा द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी

श्रीबगला को त्रि-शक्ति-रूप में माना गया है-

अग्निर्वै देवानां मनोता तस्मिन् हि तेषां मनांसि ओतानि !

Report this page